बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
उत्तर -
वेदवादी दार्शनिकों के भी दो रूप हैं - तर्क-प्रधान एवं शब्द प्रधान जो सम्प्रदाय तर्क के आधार पर वेद की प्रामाणिकता को निर्धारित करते हैं उन्हें तर्क-प्रधान और जो सम्प्रदाय वेद को स्वतः प्रमाण मानते हैं तथा तर्क को उसका सहायक एवं अंग मानते हैं उन्हें शब्द प्रधान जाना जाता है। इस प्रकार न्याय तथा वैशेषिक को तर्क प्रधान कहना उचित ही होगा। तर्क या अनुमान का प्रमाण सांख्य दर्शन देता है। उसके द्वारा प्रतिपादित दो मूल तत्व प्रकृति एवं पुरुष है।
न्यायविद्या तर्क युक्ति या हेतु को प्राधान्य देने के कारण हेतु-विद्या प्रमाण-विद्या अन्विक्षिकी आदि नामों से सुविख्यात है। वह तो सांख्य के 'पुरुष' की भाँति आत्मा को प्राधान्यतः अनुमेय अनुमान - गाम्य ही मानता है। उदयनाचार्य का आत्मतत्वविवेक हेतु या तर्क द्वारा आत्मा की सिद्धि दर्शित करता है। उनकी न्यायकुमुमांजति तो ईश्वर की सिद्धि के अनुमान वे सर्वतोऽधिक उपयोगी होने की बात उजागर करती है। इसी से वह उदयनाचार्य की उत्कृष्टतम कृति मानी जाती है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि न्यायदर्शन मुख्यतः हेतु विद्या या प्रमाण-विद्या है आन्वीक्षिकी नहीं। स्वयं भाष्यकर न्यायदर्शन में 'आन्वीक्षिकी' शब्द की अपनी व्याख्या से भी यह बात सुस्पष्ट कर देते हैं। न्यायसूत्र के अवतरणिका भाष्य में वे स्पष्ट करते हैं -
"प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्यान्वीक्षणामन्वीक्षा तया प्रवर्तते इति आन्वीक्षिकी न्याय विद्या न्यायशास्त्रम्। यत् पुनरनुमानं प्रत्यक्षागमविरुद्धं न्यायाभासः स इति।'
उनकी इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष तथा आगम प्रमाण द्वारा ईक्षित पदार्थ या तत्व का अन्तर पुनरीक्षण की अन्वीक्षण या अन्वीक्षा है। तत्व - ज्ञान की इस प्रणाली से प्रवृत्त होने वाला शास्त्र 'आन्वीक्षिकी' कहा जाता है। यही न्याय विद्या पर न्याय शास्त्र के नाम से विख्यात है। हाँ पर बात अवश्य है कि जो अनुमान प्रत्यक्ष अथवा आगम अथवा दोनों के विरुद्ध हो वह न्याय कहे जाने का अधिकारी न होने से 'न्यायाभास' है। न्यायाभाष्य के इस कथन से यह बात स्पष्ट है कि अनुमान प्रमाण प्रत्यक्ष और आगम की आवश्यक पूरक या उपोद्वलक है उसमें किसी प्रकार का ननु-नच अथवा विकल्प नहीं है।
भाष्यकार का यह वक्तव्य है कि जिस प्रकार चार प्रधान विद्याओं में त्रयी वार्ता तथा दण्डनीति के अनेक वैशिष्ट्य उनके अलग-अलग या स्वतन्त्र प्रस्थान होने की बात प्रमाणित करते हैं उसी प्रकार आन्वीक्षिकी या न्याय के संशय प्रयोजन आदि अपने चौदह पदार्थ भी उसका अन्य तीनों से पृथक्- प्रस्थानत्व सिद्ध करते हैं। यदि न्यायसूत्रकार गौतम ने इनका पृथक् पदार्थों के रूप में कथन न किया होता तो यह न्यायविद्या उपनिषदों की भाँति अध्यात्म विद्या-मात्र होकर रह जाती हेतु विद्या या प्रमाण विद्या न हो पाती।
इस निरूपण से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रभावों की उपयोगिता एवं सार्थकता प्रमेयों का ज्ञान कराने में हैं। इन प्रमेयों में 'आत्मा' ही सर्व प्रधान प्रमेय हैं क्योंकि बिना ऐसा हुये न्याय के अध्यात्म विद्या मात्र होने का प्रश्न ही कहाँ जिससे बचने के लिए भाष्यकार उसके अपने चौदह पदार्थों के की बात की कल्पना करते हैं। केवल आत्मा का प्रधानतया प्रतिपादन उपनिषद् आदि वेदान्तों का विषय है किन्तु उसके साथ-साथ महान्याय। अनुमान के पंचावयवों तथा संशयवाद जल्द छल आदि न्यायांगों का विशेष रूप से कथन तथा प्रतिपादन न्याय विद्या का ही विषय है।
प्राचीन काल से 'न्याय' शब्द का प्रयोग किया जाता था यह न्यायसूत्र वृत्तिकार विश्वनाथ ने श्रुति स्मृति तथा पुराण के आधार पर बताया है। न्यायसूत्र नाम इस बात का प्रमाण है कि न्यायसूत्र के प्रणेता के समय में 'न्याय' शब्द न्यायविद्या के लिये प्रसिद्ध हो गया था। न्याय का पारिभाषिक अर्थ भाष्यकार वात्स्यायन ने किया है जिसके अनुसार उसका अर्थ है 'प्रमाणों के द्वारा अर्थ की परीक्षा करना और इसी अर्थ में 'अन्वीक्षा' का प्रयोग भाष्यकार को मान्य है।
डॉ. विद्याभूषण के अनुसार - न्यायसूत्र का एक अंश गौतम ने लिखा और दूसरा अंश अस्रपाद ने। डॉ. दासगुप्त ने भी वर्तमान न्यायसूत्र के दो अंश स्वीकार किये हैं एक अध्यात्म विद्या और दूसरा तर्कविद्या। आचार्य विश्वेश्वर के अनुसार वात्स्यापन भाष्य से यह स्पष्ट है कि आन्वीक्षिकी या न्यायविद्या के दो अंग हैं आध्यात्म विद्या तथा प्रमाणों द्वारा अर्थ की परीक्षा। एक के रचयिता गौतम हैं तथा दूसरे के पक्षपाद।
न्यायसूत्र के प्रणेता अक्षपाद का समय डॉ. विद्याभूषण ने १५० ई. स्वीकार किया है प्रो. जैकोबी अनुसार २०२ से ५०० ई. के बीच।
डॉ. लोडास इसे ईसवीय - पूर्व पंचम शतक के अन्त या ई. पू. चतुर्थ के प्रारम्भ की रचना मानते हैं। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री अक्षपाद को तो बुद्धपूर्ण-कालिक मानते हैं किन्तु न्यायसूत्र जो उनके अनुसार गौतम की कृति है की रचना महाया बौद्ध सम्प्रदाय के बाद प्रायः २०० ई. की मानते हैं।
इन सभी के अनुसार न्यायसूत्र की रचना ई.पू. पंचम या षष्ठ शतक में हुई थी। किन्तु इसके विपरीत बौद्ध दर्शन के सुविख्यात मनीषी प्रो. शेरवास्की इसे ई. पू. पंचम का न मानकर ई. पंचम शताब्दी का मानते हैं ठीक १००० वर्ष बाद का। इसका कारण वे इसमें हुए विज्ञानवाद के उल्लेख की मानते हैं। इस सम्बन्ध में इतना ही है कि न्यायसूत्र का स्वरूप चिरकाल से अव्यवस्थित रहा है अतः इसमें किसी सम्प्रदाय के उल्लेख अथवा खण्डन की मौलिकता के निश्चय के अभाव में उस उल्लेखादि के आधार पर इसके रचनाकाल का निर्णय बहुत समीचीन नहीं कहा सकता। अनेक न्यायसूत्रों पर भाष्य करते हुए वातस्यायन निश्चय के अभाव में दो या उससे भी अधिक अर्थ करते हैं। इससे लगता है कि न्यायसूत्रों के अध्यनाध्यायन की परम्परा भाष्यकार के समय तक आते-आते विरलातिविरल-छिद्मप्राय हो गयी थी और अनेक सूत्रों के स्वरूप तथा अर्थ के विषय में अनिश्चय उत्पन्न हो गया था। एतदर्थ कई शताब्दियों का समय अपेक्षित होता है। ऐसी स्थिति में न्यायसूत्र प्रणेता का समय ई. पू. चतुर्थ या पंचम शतक के बाद का हो नहीं सकता।
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- प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
- प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
- प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
- प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
- प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
- प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
- प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
- प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
- प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
- प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
- प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
- प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
- प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
- प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
- प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।